जब हम अपने सपनों का भार स्वयं उठा कर अपने हौंसलों को स्वयं गति देने का सामर्थ्य रखते हैं तभी हम सच्चे अर्थों में स्वावलंबी बन पाते हैं। अपना ई-रिक्शा स्वयं चला कर अपने बनाए हुए उत्पादों की बिक्री के लिए चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लिए घर घर जाती लाली जी और चंद्रकला जी को देख कर आज बहुत सुखद अनुभूति हुई।
आप दोनों ही महिलाओं से जानकारी मिली कि वे स्वयं सहायता समूह से जुड़ी हैं और शिल्पग्राम में उनका उत्पाद बिक्री केंद्र है जिसमें घरों में काम आने वाले मसाले आदि वे स्वयं तैयार करती हैं।
हालांकि कड़ी मेहनत के बाद भी उन्हें अधिक लाभ राशि प्राप्त नहीं होती किंतु उनके हौंसलों में कमी नहीं आई है।
यही वह बात है जिसने आज मुझे गहराई तक प्रभावित किया।
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